क्या आप कभी कोर्ट गए हैं? अगर गए हैं तो कोर्ट में आपने कई तरह की अदालतों का नाम सुना होगा, जैसे क्रिमिनल कोर्ट, सिविल कोर्ट, लोक अदालत, पर मोटे तौर पर भारत में दो तरह की अदालते हैं, क्रिमिनल और सिविल, आसान भाषा में, आज इस आर्टिकल हम बात करेंगे सिविल लॉ और यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की, जानेंगे, यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए संविधान में क्या लिखा है, सिविल लॉ क्या होता हैं? हिंदू कोर्ट बिल क्या है और उत्तराखंड से इस पर क्या खबर आई है? हम इस आर्टिकल के माद्यम से आसान भाषा में रोज एक जटिल विषय की सभी आयामों को अच्छे से एक्सप्लेन करने की कोशिश करते हैं शुरुआत करते हैं इस मुद्दे के बेसिक से पहले समझते हैं।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC)शब्द कहां से आया??
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) शब्द आखिर आया कहां से तो आपको बता दे की भारत के संविधान में नागरिकों को दो तरह के अधिकार मिले हुए हैं पहला मूल अधिकार ये ऐसे अधिकार हैं जिन्हें एक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है, उससे सामान्य हालात में ये अधिकार नहीं छीने जा सकते, अगर इन अधिकारों में किसी तरह की कटौती या हहनन होता है तो अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है, दूसरे हैं राज्य के नीति निर्देशक तत्व, इन्हें डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी(DPSP ) के नाम से संविधान में जगह दी गई है, जैसे मूल अधिकारों के लिए हम अदालत में जा सकते हैं, वैसे हम नीति निर्देशक तत्वों के लिए अदालत में नहीं जा सकते, यह एक आदर्श स्थिति है, इसमें ऐसे प्रावधान है जो सरकार को दिशा दिखाने के लिए रखे गए हैं, अपनी नीतियां बनाते वक्त सरकार को इसका ध्यान रखना चाहिए। यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत में केवल GOA में लागू है इस संहिता की जड़ें 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता में मिलती हैं, जिसे पुर्तगालियों द्वारा लागू किया गया था और बाद में इसे वर्ष 1966 में नए संस्करण के साथ बदल दिया।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की पूरी कहानी ??
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) संविधान के भाग चार में आर्टिकल 36 से आर्टिकल 51 तक यही डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी मौजूद है, इसी का आर्टिकल 44 सभी नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने की बात करता है, आर्टिकल 44 के अनुसार राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक सहिंता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा, इसके मुताबिक सरकार की जिम्मेदारी है कि वो अपने नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाए पर सरकार पर इसे बनाने के लिए कोई बाध्यता नहीं है कोई भी सरकार या नागरिक इसका पालन करने के लिए बाध्य नहीं किए जा सकते माने ये ऐसा कोई अधिकार नहीं जिसके ना मिलने पर कोर्ट में अपील की जा सके यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट समझ लिया ,अब सिविल लॉ को समझते हैं जानते हैं कि अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसी स्थिति बनती है तो क्या होगा जैसे कि हमने शुरुआत में बताया अदालतें दो तरह की होती है क्रिमिनल और सिविल क्रिमिनल मामले आपको पहले बताते हैं क्रिमिनल लॉ के केसेस में अमुक व्यक्ति और सरकार के बीच मुकदमा बनता है,
आपने मुकदमों की सुनवाई के दौरान अक्सर द स्टेट वर्सेस पर्सन या सरकार बनाम X व्यक्ति ऐसा सुना होगा उदाहरण के लिए अगर किसी x नाम के व्यक्ति ने Y नाम के व्यक्ति पर हमला किया तो वाई की ओर से सरकार केस लड़ती है क्रिमिनल मामलों में ऐसा माना जाता है कि हमला किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि एक नागरिक पर हुआ है जिसकी जिम्मेदारी है स्टेट की सरकार की ऐसे मामलों में व्यक्ति चाहे किसी भी समुदाय से आता हो सभी के लिए वोट का प्रोसेस और दी जाने वाली सजा एक समान होते हैं, यदि जो उदाहरण हमने अभी आपको बताया, उसमें एक्स और वाई अलग-अलग समुदाय से हैं तो भी सुनवाई सजा में कोई अंतर नहीं होता, अब सिविल मामलों की तरफ बढ़ते हैं, क्रिमिनल लॉ से ठीक उलट सिविल मामलों में मुकदमा सरकार के खिलाफ नहीं लड़ना होता, सिविल मुकदमा दो व्यक्तियों, दो संस्थानों, दो समूहों आदि के बीच होता है, उदाहरण के लिए जमीन, प्रॉपर्टी, मान-हानी, तलाक जैसे मुद्दों में सिविल मुकदमा दाखिल किया जाता है, इस क्रिमिनल कोर्ट में जहां सजा पर जोर दिया जाता है, वहीं ऐसे मामलों में मुआवजा या सेटलमेंट कराना प्राथमिकता में रहता है, क्रिमिनल और सिविल मामलों को जानने के लिए एक बात क्लियर है कि क्रिमिनल मामलों में जो कानून होते हैं वो सभी समुदायों के लिए एक समान है, पर सिविल मामलों में ऐसा नहीं है, इसी को एकरूपता देने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की मांग उठती रहती है,
अगर ऐसा होता तो सभी समुदायों के लिए सिविल मामलों में भी एक समान नियम और सजा तय होती , अब थोड़ा इतिहास में चलते हैं, जानते हैं यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट को लेकर संविधान सभा के सदस्यों, महात्मा गांधी और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के क्या विचार थे? जैसा कि हमने आपको पहले बताया, यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान का आर्टिकल 44 है और यह डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी में आता है, हालांकि महात्मा गांधी डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स को संविधान का डिस्टपिन कहा करते थे, उनका मानना था जो चीजें संविधान के निर्माता कहीं डाल नहीं पाए, उन्हें डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में डाल दिया, संविधान सभा के मेंबर K.T शाह तो कहा करते थे, यह एक पोस्ट डेटेड चेक की तरह है,जब पैसा होगा तब सरकार इसे लागू करें, वैसे यहां पैसे का मतलब प्रभावित होने वाले वर्गों की सहमति से था, यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट पर संविधान सभा में भी खूब बहस हुई, 23 नवंबर 1948 को नई दिल्ली की कॉन्स्टीट्यूशन हॉल में चेयरमन की कुर्सी पर उपसभापति हरेंद्र कुमार मुखर्जी बैठे थे, तभी बॉम्बे से संविधान सभा के मेंबर मीनू मसानी ने यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट का प्रस्ताव रखा, प्रस्ताव के आते ही इस पर जोरदार बहस होनी शुरू हो गई, तर्क वितर्क के दौरान बात अंग्रेजों और खिलजी के शासन तक भी पहुंच गई,
इसका समर्थन करने वाले लोगों में बाबा साहिब, मीनू मसानी, केएम मुंशी और अल्लादी कृष्णा स्वामी अइय्यार थे, इनका तर्क यह था कि विवाह आदि का लॉ से क्या लेना देना यह मौलिक अधिकारों के खिलाफ नहीं है बल्कि संविधान में प्रस्तावित मौलिक अधिकारों की रक्षा का प्रावधान है खास तौर पर इससे लैंगिक समानता आएगी अलादी कृष्णा स्वामी अइय्यार जो कि मड्रास से संविधान सभा के सदस्य थे उन्होंने कहा कि मुस्लिम सदस्य कहते हैं कि समान नागरिक संहिता मुसलमान नागरिकों के बीच अविश्वास और कटुता लाएगी मैं कहता हूं इससे विपरीत होगा समान नागरिक संयता समुदायों के बीच एकता का कारण बन सकती है और बाबा साहेब का तर्क था कि इस देश में कंप्लीट यूनिफॉर्म क्रिमिनल कोड है ज्यादातर सिविल कानून भी यूनिफॉर्म है, सिर्फ शादी और उत्तराधिकार के मसले पर हम दखल नहीं दे पाए हैं और आर्टिकल 35 के जरिए उसे ही छूना चाहते हैं, मुसलमानों में शरीयत का पालन पूरे देश में एक जैसा नहीं है, यूनिफॉर्म सिविल कोड वैकल्पिक व्यवस्था है, यह अपने चरित्र के आधार पर नीति निर्देशक सिद्धांत होगा और इसी वजह से राज्य तत्काल यह प्रावधान लागू करने के लिए बाध्य नहीं है, राज्य जब उचित समझे तब इसे लागू कर सकता है, वहीं कई सदस्य इसके विरोध में भी थे, इनमें मोहम्मद इस्माइल, नसीरुद्दीन अहमद, मौलाना हसरत और दीपोकर साहेब बहादुर थे, इनका तर्क ये था कि अगर UC जैसा कोई कानून आता है तो इसमें पर्सनल लॉ को बाहर रखना चाहिए क्योंकि पर्सनल लॉ लोगों के धर्म और कल्चर का हिस्सा है |
इस पूरी बहस के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट पर संविधान सभा में वोटिंग हुई और यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट को संविधान के आर्टिकल 44 के तहत डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में डाल दिया गया, यह कहकर कि स्टेट जब उचित समय समझेगा तब वो इसे लागू करेगा, इसके बाद 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हो गया, फिर 1951 में बाबा साहेब जो कि उस वक्त देश के कानून मंत्री थे, उनके नेतृत्व में संसद में हिंदू कोर्ट बिल पेश किया गया, इसमें महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में अधिकार, तलाक का अधिकार, बहु विवाह पर रोक, विधवा विवाह को मान्यता जैसी बातें थी, पर बिल पेश होते ही संसद में हंगामा होना शुरू हो गया, विरोध करने वालों का तर्क था कि सिर्फ हिंदुओं के लिए कानून लाकर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, इसी मुद्दे पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने पीएम नेहरू को चिट्ठी लिखी, खत में उन्होंने कहा कि को अपनी सहमति देने से पहले पंडित नेहरू उसके अच्छे बुरे पक्ष को भी देख लें इस खत के जवाब में जवाहरलाल नेहरू ने सदन और सरकार के फैसलों को चुनौती देने के राष्ट्रपति के अधिकार पर ही सवाल उठा दिए फिर आया साल 1955 पंडित नेहरू ने साहस दिखाते हिंदू कोर्ट बिल को पारित कराया जिसमें हिंदू मैरिज एक्ट 1955 हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट और हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट पास इन एक्ट्स की वजह से हिंदू समुदाय में तलाक उत्तराधिकार तलाक के बाद गार्जियनशिप और बच्चों को गोद लेने आदि के प्रावधान तय किए गए |
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर उत्तरकाण्ड में क्या चल रहा है ??
पहाड़ों के राज्य उत्तराखंड में 5 फरवरी से उत्तराखंड विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है उत्तराखंड विधानसभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) बिल 6 फरवरी को पेश किया जाएगा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मुताबिक समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है |
धामी सरकार ने मई 2022 में नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की कमेटी गठित की थी जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के अध्यक्षता में गठित इस कमेटी ने यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट की ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार की है। बकौल सीएम धामी ये कमेटी 2 फरवरी को अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगी और आगामी विधानसभा सत्र में विधेयक लाकर सरकार समान नागरिक संहिता को प्रदेश में लागू कर देगी | धन्यवाद !
दोस्तों अगर आप सभी को यह आर्टिकल यूनिफॉर्म सिविल कोड कहां से आया?,पूरी कहानी,उत्तराखंड से क्या है सम्बन्ध ?से सम्बंधित जानकारी अच्छी लगी हो तो आप सभी इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर करें हम आप सभी के लिए इसी तरह का आर्टिकल प्रतिदिन शेयर करते रहते हैं जो आप सभी के लिए बहुत ही लाभकारी होता है. धन्यवाद
आप इसे भी पढ़े.